प्रेमशंकर रघुवंशीजी की कलम से

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रहने लायक है दुनिया

रहने लायक है दुनिया अभी इतनी खराब नहीं हुई दुनिया कि रहा ही नहीं जाए इस पर ऐसा कभी होगा भी नहीं अभी तो — झाडुएँ बनाने और बुहारने वालों को हर मोर्चे पर तैनात करने की घडी़ है धूल धक्कड़ उछालने वाले हाथों में वह दम नहीं कि इसी...

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प्रणय का अनहद

प्रणय का अनहद *************** लिख देना चाहता एक कविता अपनी कलम से बदन पर तुम्हारे उतार देना चाहता मन में सभी इन्द्रधनुष अपने और भर देना चाहता प्रणय का अनहद रोम -रोम में तुम्हारे ! ! (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “प्रणय का अनहद “से उद्धृत )

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भूल जाने की याद में

भूल जाने की याद में ******************* जब से भूलने का कहा तुम्हें भूलने की कोशिश में लगा रहता सपनों से भी कहता कि वे भूल जाने को आया करें भूल जाने की याद में जागता मन यही यही करता उस पेड़ की तरह जो बारिश में बार -बार मुँह पोंछता...

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जिनसे भी करता प्यार

जिनसे भी करता प्यार ******************* जिनसे भी करता प्यार याद नही रहती जन्मतिथि याद ही नहीं रहती रुचि -अरुचि अच्छाई -बुराई उनकी जिनसे भी करता प्यार नहीं खिंचा पाता फोटुएँ उनके साथ पौंधों को सूना कर नहीं करता उनसे प्यार का इज़हार फूलों से जिनसे भी करता प्यार कर ही...

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गाँव मेरा सिरहना है

गाँव मेरा सिरहना है ***************** छन्नू दादा बताते रहे गाँव के हाल देर तक और लौटते हुए छोड़ गये फर्श पर पगथलियों के निशान जहाँ उभरने लगे खेत भरने लगी कमरों में फसलों की गंध धीरे धीरे कि तभी आ लेटा गेंवडे़ वाला महुआ मेरे पास और सुनाता रहा ढेर...

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अरदास करते वक्त

अरदास करते वक्त **************** देवालय में घुस आया दैत्य पूजा के शब्दोच्चार में निखर रहा जिस का रुप जय -जय कार के बीच घूरता युवतियों को अपने साम्राज्य की चीजों के माफिक पूजा-प्रार्थना घर हो या कोई भी जगह सबके सब बन गये उसके निवास तभी तो अर्चना के सडे़...

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प्रेम -9

प्रेम -9 ****** यदि तुम अपनी गंध , दमक,सिहरन,स्वर और उष्मा नहीं बोती तो ये जमीन कहीं की भी नहीं होती । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )

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प्रेम -8

प्रेम -8 ******* कितना धुला -धुला है पठार हाथ हिला -हिला कर टेर रहा लगातार सुनो और देखो उधर । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )

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प्रेम -7

प्रेम -7 ****** छितराने लगे मेघ और शरद की धूप कालने लगी ऊन आकाश में खुलकर (प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )

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प्रेम -6

प्रेम -6 ****** ओफ! कितना कीचड़ यहाँ अब हम अपने खून पसीने से उगायें कमल । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “ तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )