Category: कविता

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कहाँ तक बहेगी नदी

कहाँ तक बहेगी नदी ***************** नदी किनारे — रेत पर घरघूले बनाते बच्चे नन्हीं इच्छाएँ लिए गृह निर्माण की कलाएँ सीख लेते सीख लेते किलों की रचना और यह भी कि कैसे -कैसे ध्वस्त किया जाता उन्हें रेत पर घरघूले बनाते बच्चे सीख लेते दुनियाभर का निर्माण और यह भी...

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आदमी होते ही

आदमी होते ही ************* हमसे ज्यादा कल्याणकारी है पेड़ कार्बन का गरल पान करते और बदले में लुटाते आक्सीजन का अमृत हमसे ज्यादा तत्ववती हैं लताएँ जो फूलती -फलती समर्पित होती हैं हमसे ज्यादा कर्मनिष्ठ हैं मेघ जो सूर्य किरणों की सीढियाँ चढ़ आकाश से मारते धरती पर छलाँग हमसे...

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डूब कर डूबा नहीं हरसूद

डूब कर डूबा नहीं हरसूद ********************* (कविता का अंश ) देख रही सरकार व्यवस्था की नजरों से इन सारे दृश्यों को और घडियाली आँसू की स्याही से पुनर्वास के पट्टों पर आश्वासन लिखती छपवाती इसी स्याही से पुनर्वास के झूठे विज्ञापन और बड़बोले भाषणों की झडी़ लगाये सुख सपनों के...

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बहती रही नदियाँ

बहती रही नदियाँ **************** देखते रहे नीची नजरों से शिखर घूरती रहीं निकृष्ट निगाहों से घाटियाँ किन्तु इनकी परवाह किये बगैर पहाड़ की नसों से होकर बहती रही नदियाँ । पढ़ती रहीं जोर -जोर से अपने तटों की जन्मकुण्डली जिन्हें सुनते वनस्पतियों संग खिलखिलाते रहे संगम तक कछार और पहाड़...

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पिता की डायरी

पिता की डायरी ************** माँ ने जतन से रखी है पिता की डायरी चाहे जब एकान्त में फेरती उस पर हाथ ठीक उसी तरह जैसे कि —- आखरी वक्त तक फेरती रही थी पिता की देह पर मेरी जाँघ पर सिर रखे उस दिन मानों एक एक साँस का हिसाब...

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सूरज

सूरज ****** मैंने आज सूरज को बदलिययों से छेड़छाड़ करते देखा मैंने आज सूरज को इन्द्रधनुष रचते देखा मैंने आज फिर से जाना कि सूरज के पास धूप ही नहीं सात रंग भी हैं मेरा दोस्त अब थकेगा नहीं कभ्भी – – -!! (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह...

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गूंगे पन की कसमसाहट

गूंगे पन की कसमसाहट ********************* अग्नि ने कोई शब्द नही रचा न जल ने न वायु ने और पुष्प कभी बोलते नही आकाश ने कोई भाषा नहीं रची न नक्षत्रों ने न पृथ्वी ने और क्षितिज कभी मुँह खोलते नहीं किन्तु कर्म के अंतर्नाद से सदैव ही अपनी संपूर्णता में...

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शान है पानी

शान है पानी *********** बिलाशक —- प्यासे का प्राण है पानी चमक है धरती की चेहरों का नूर भी बिलाशक —- थाली की दमक है पानी गमक है रोटी की चौके की चमक भी बिलाशक —- आदमी की शान है पानी आन है जीवन की चेतना की तरंग भी —-...

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ऐसे में कैसे -2

ऐसे में कैसे -2 ********** दिन भर भटक कर लौटी चिडियाँ जब शाम को पनघट के उस पीपल पर फुदक फुदक कर गाती है तो ऐसे में उन्हें चुप करने के लिए अचानक धमाका करने या पीपल पर पहरा बिठाने का क्या अर्थ होता है ? (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी...

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ऐसे में कैसे

ऐसे में कैसे ********** जुबानों पर कुण्डियाँ लगी है दस्तकें तक डूब जाती इस महाचुप्पी में ऐसे में कोई भी कैसे गा सकता कोई छन्द क्योंकि जब जुबानें बन्द हो जाती हैं तो कान -नाक -आँख सभी हो जाते बन्द सबके सब पटक दिये जाते इस महाचुप्पी में मैंने यहीं...