Category: आज की कविता

0

विजय

विजय ****** पाँव मेरे बहुत जिद्दी हो गये हैं इन्हें चलने के अलावा सूझता कुछ भी नहीं और तेरा शुक्रिया कर लूँ कि तूने व्यथाएँ इतनी बिछा दी राह पर कि उनसे बात करते सफर कटता जा रहा है किन्तु आकर देख तो लो ये व्यथाएँ जो तुम्हारी भेंट थीं...

0

कुछ वैसा ही

कुछ वैसा ही *********** लिख लिखकर मैं होता प्रसन्न पढ़कर बतलाता बार बार ! ! सूरज लिखता ज्यों ज्योतिपत्र लिखता चंदा ज्यों धवल प्यार तारे लिखते ज्यों नभ गंगा बादल ज्यों लिखते धुआँधार कुछ वैसा ही मैं भी लिखता लिख लिखकर पढ़ता बार बार ! धरती ज्यों सिरजें सौंधापन पर्वत...

0

दो पल ही बोल लें

दो पल ही बोल लें **************** आओ !हम दो पल ही बोल लें! चुप्पी के बंधन को खोल लें !! समय तो है रेशम का धागा जो घिसता ही रहता अभागा उससे हम गठबंधन तोड़ लें ! हम तुम तो लहरों की जात हैं सरिता के मन की सौगात हैं...

0

बोलो अब

बोलो अब ********** एक साँस ठण्डी है एक गरम बोलो अब क्या करें हम ? एक तरफ सूरज है चाँद एक ओर आसपास बेईमान बीच बडे़ चोर पहले पर रिश्वतिया समय बेशरम बोलो अब क्या करें हम ? ? प्रहलाद जल रहा होलिका प्रसन्न अमृत घट फोड़ रहे जहरीले यत्न...

0

जीवन

जीवन ****** तमाम पंखुरियाँ झर जाने के बाद सुगंध का अहसास फिर भी रहेगा घर-घर , वन -वन झर रहा गुलाब -सा जीवन ।। (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के गीत संग्रह ” मुक्ति के शंख ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/

0

तुम्हीं बताओ

तुम्हीं बताओ *********** तेरा उजडा़ चमन मेरा धूल भरा आँगन तुम्हीं बताओ इस मौसम में कौन बहारें लायेगा तोरण कौन सजायेगा ! ! होती यदि रोशनी संतुलित सारे आँगन जगमग होते काले मन काले हाथों से अन्धकार हम कभी न बोते तुम्हीं बताओ ऐसे तम में कौन रोशनी लायेगा !...

0

मत करो

मत करो ******** मोड़ चाहे सफर के हों या सड़क के -भले लगते हैं गुजर करके सुरंगों से आ रहे वे लोग हो चुका जिनके जेहन में आत्मघाती रोग जहाँ देखो वहीं से वे गले लगते हैं बढ़ गये जो। भुलावों में मरुथलों की ओर जिन्दगी के साथ जिनकी बँध...

0

उगती सुबह का गीत

भोर भयी,अलसाये स्वप्न सब बिसार दे छितराये बालों को फिर से सम्हाल ले देख तेरे द्वारे पे ज्योति पुंज आये हैं ! बीती है अन्ध निशा पुलकित है दिशा -दिशा मलया ने गंध मली महकी हैं गली -गली बगिया में सौरभ ने ताजगी बिछाई है फूलों ने नये -नये छन्द...

0

घर -घर तुम बिखराओ फूल

घर -घर तुम बिखराओ फूल ********************** हर समय खिले-से रहते जो पथ पर वे बिखराते फूल पल पल में रोते रहते जो पथ पर वे बरसाते शूल नहीं कहीं कड़वाहट घोलो नहीं कहीं छितराओ धूल घर घर नेह -गंध बरसाओ घर घर तुम बिखराओ फूल । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी...

0

हमें ही परचानी होगी आग

हमें ही परचानी होगी आग ********************** लोग हैं कि कानून बना मिटा रहे लोग हैं कि रेलों -बसों-यानों में आ -जा रहे लोग हैं कि कोठियों सहित नम्बर दो हुए जा रहे लोग है कि झोपडि़यों सहित बंधुआ किये जा रहे लोग है कि तन -बदन के धंधों में है...