ऐसे में कैसे

ऐसे में कैसे
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जुबानों पर कुण्डियाँ लगी है
दस्तकें तक डूब जाती
इस महाचुप्पी में
ऐसे में कोई भी
कैसे गा सकता कोई छन्द
क्योंकि जब जुबानें बन्द हो जाती हैं
तो कान -नाक -आँख
सभी हो जाते बन्द
सबके सब पटक दिये जाते
इस महाचुप्पी में
मैंने यहीं से अपने आपको
टटोलना शुरु किया है ठीक से ।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )

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