प्रेम -6

प्रेम -6
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ओफ!
कितना कीचड़ यहाँ
अब हम
अपने खून पसीने से
उगायें कमल ।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “ तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )

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