प्रेम -5

प्रेम -5
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शहर में लगी
धारा के बावजूद
बहती एक धारा
मेरे भीतर कल कल – – – –
जिसमें नहाकर
तनी बन्दूकों के बीच से
आ ही गया तुम्हारे पास
ताजातरीन ।
(श्री ब्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )

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