Category: प्रणय का अनहद

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प्रणय का अनहद

प्रणय का अनहद *************** लिख देना चाहता एक कविता अपनी कलम से बदन पर तुम्हारे उतार देना चाहता मन में सभी इन्द्रधनुष अपने और भर देना चाहता प्रणय का अनहद रोम -रोम में तुम्हारे ! ! (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “प्रणय का अनहद “से उद्धृत ) Dr....

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भूल जाने की याद में

भूल जाने की याद में ******************* जब से भूलने का कहा तुम्हें भूलने की कोशिश में लगा रहता सपनों से भी कहता कि वे भूल जाने को आया करें भूल जाने की याद में जागता मन यही यही करता उस पेड़ की तरह जो बारिश में बार -बार मुँह पोंछता...

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जिनसे भी करता प्यार

जिनसे भी करता प्यार ******************* जिनसे भी करता प्यार याद नही रहती जन्मतिथि याद ही नहीं रहती रुचि -अरुचि अच्छाई -बुराई उनकी जिनसे भी करता प्यार नहीं खिंचा पाता फोटुएँ उनके साथ पौंधों को सूना कर नहीं करता उनसे प्यार का इज़हार फूलों से जिनसे भी करता प्यार कर ही...

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हँसने के लिए

हँसने के लिए ************ हँसने के लिए ढेर सारी चीजें नही चाहिए कुछ बेफिक्री ,कुछ उमंग कुछ आनंद और छाती भर आक्सीजन काफी है आक्सीजन ः जो हरे भरे पेडों से जन्म लेकर पानी की आत्मा बनती और पानी जो कण कण का जीवन होकर प्यार की चमक बनता हँसने...

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कायाकल्प

कायाकल्प —————- मिलते रहे प्रथम मिलन की तरह हर बार फूटते रहे रोम -रोम से छंद हर बार हर बार होता रहा कायाकल्प हमारा !! (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “प्रणय के अनहद ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/