नदी -3

नदी -3
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बोली नदी —
कोई न कोई लड़की
जब -तब डूब जाती मेरे भीतर
अंधेरे में
सूरज का अहसास खोकर
सुबह वह एक चर्चा बनती
फूल कर तैरती लाश के रुप में
तब तनकर चलने की कोई भी
उमंग नही होती तुम्हारे पास
और मेरे पास होती है
निश्वास। तुम्हारे लिए
कविता का इस तरह ठण्डाना
कितना बडा़ हादसा है
इसी चर्चा में लगे हैं
किनारे मेरे
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “तुम पूरी पृथ्वी हो कविता” से उद्धृत )