पिता – पहाड़ों के बीच

पिता

कविता संग्रह – पहाड़ों के बीच (Pahadon Ke Beech) रचनाकार– श्री प्रेमशंकर रघुवंशी.

चाहे जितना सर्द गर्म हो मौसम

पिता भोर के पहले उठ आते

नहा धोकर रोज रोज नहलाते

घाटी से उगते सूरज को —-चमचमाते कलश से

मुझे पिता का कलश हमेशा हमेशा

सूरज से ज्यादा चमकदार लगता

जाने कितने रोगों से ग्रस्त मेरे बूढ़े पिता

आज भी सूरज से ज्यादा जवान हैं

आज भी उससे पहले उठते हैं

काम पर पहुँचते हैं

और सूर्यास्त के बाद जब लौटते हैं

तो आज भी घर -आँगन

एक नये सूरज की रोशनी से भर जाता है

मेरे बूढ़े पिता आज भी

सूरज से ज्यादा प्रकाशवान है

रोशनी के पहाड़ की तरह!

कविता संग्रह – पहाड़ों के बीच (Pahadon Ke Beech) रचनाकार– श्री प्रेमशंकर रघुवंशी.

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