कायाकल्प

कायाकल्प
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मिलते रहे
प्रथम मिलन की तरह
हर बार
फूटते रहे
रोम -रोम से छंद
हर बार
हर बार
होता रहा
कायाकल्प हमारा !!
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “प्रणय के अनहद ” से उद्धृत )

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