भरी पूरी सृष्टि

भरी पूरी सृष्टि
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मुझसे अकेले मिलते वक्त भी
अकेले नहीं होते
एक पूरे परिवेश के साथ मिलते हो तुम
बातें करते तो लगता —
कि झर रहे हों पुष्प आश्वस्ति के
शब्द शब्द
अनुराग की अर्थलय में डूबे होते हैं तुम्हारे
और भाव ऐसे —
मानों फलों में पकते बीज हों
तुम इस तरह मिलते हो
जैसे कि लिहाफ फेंककर
दिन को प्रभात मिलता है
जैसे कि फसलों को
किरनों का गुनगुना स्पर्श मिलता है
तुम कुछ इसी तरह मिलते हो दोस्त
और जब भी मिलते हो
आँख भर देखते हो
कान भर सुनते हो
मन भर गुनते हो एक एक बात
सौगात यह कविता ने दी है हमें
कि हम अकेले मिलते वक्त भी
अकेले नहीं होते
एक भरा पूरा पर्यावरण होता है हमारे साथ
जैसे कि जमीन आकाश अकेले होकर भी
अकेले नहीं होते
एक भरी पूरी सृष्टि होती है उनके साथ ।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “पकी फसल के बीच “से उद्धृत )