तुम्हीं बताओ

तुम्हीं बताओ
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तेरा उजडा़ चमन
मेरा धूल भरा आँगन
तुम्हीं बताओ इस मौसम में
कौन बहारें लायेगा
तोरण कौन सजायेगा ! !
होती यदि रोशनी संतुलित
सारे आँगन जगमग होते
काले मन काले हाथों से
अन्धकार हम कभी न बोते
तुम्हीं बताओ ऐसे तम में
कौन रोशनी लायेगा !
तम को कौन भगायेगा ! !
पग -पग शूल बिछाये उसने
डगर डगर डाले अंगारे
इसीलिए तो देख रहे अब
बन्द हुए घर-घर के द्वारे
तुम्हीं बताओ इन द्वारों के
काँटे कौन हटायेगा !
कौन फूल बिछवायेगा ! !
हम सब चलते तो जाते हैं
लेकिन लगते रुके -रुके से
साँसों से आशाएँ लिपटीं
लेकिन हैं सब थके -थके से
तुम्हीं बताओ हारे मन में
कौन विजय फहरायेगा !
उत्सव कौन मनायेगा ! !
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” अँजुरी भर घाम ” से उद्धृत )

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