Tagged: nahi rahne ke baad bhi

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लहूलुहान है नदी ! – नहीं रहने के बाद भी

लहूलुहान है नदी ! कविता संग्रह (Nahi Rahne Ke Baad Bhi)  नहीं रहने के बाद भी रचनाकार– श्री प्रेमशंकर रघुवंशी. गटरों के तेज़ाब से आहत छाले पड़ी देह पर बेशररम की झाड़ियाँ उगाए लहूलुहान है नदी तटों में दम नहीं कि एड़ियाँ घिसने के पत्थर ही बचा लें बचा लें...

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सिल देना चाहती हैं नदियाँ – “नहीं रहने के बाद भी”

सिल देना चाहती हैं नदियाँ ———————————- कितने भले रहे होंगे वे जिन्होंने रची होगी नदियाँ पाला, पोसा ,बड़ा किया होगा रचे होंगे – तीज -त्यौहार -उत्सव -मेले और कितने बुरे हुए जा रहे हम जो घोले जा रहे विष बहाए जा रहे सड़ाँध इनमें और चाहे जहाँ हाथ -पाँव बाँध...