प्रेम -7

प्रेम -7
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छितराने लगे मेघ और
शरद की धूप
कालने लगी ऊन
आकाश में खुलकर
(प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )

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