प्रेम-2

प्रेम-2
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ओठों से
फूट पडा़ झरना
पपीहरा
पा गया तृप्ति ।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )

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