प्रेम -5
प्रेम -5 ******* शहर में लगी धारा के बावजूद बहती एक धारा मेरे भीतर कल कल – – – – जिसमें नहाकर तनी बन्दूकों के बीच से आ ही गया तुम्हारे पास ताजातरीन । (श्री ब्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत...
लेखक एवं साहित्यकार
प्रेम -5 ******* शहर में लगी धारा के बावजूद बहती एक धारा मेरे भीतर कल कल – – – – जिसमें नहाकर तनी बन्दूकों के बीच से आ ही गया तुम्हारे पास ताजातरीन । (श्री ब्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत...
प्रेम -4 ******* जब नहीं होती पास तो होती एक कविता ठीक तुम्हारी तरह होने पर होती तुम एक कविता कविता की तरह । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )
प्रेम -3 ******* तुमने देखा और मैं आकाश हो गया एक दम तना हुआ । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )
प्रेम-2 ******* ओठों से फूट पडा़ झरना पपीहरा पा गया तृप्ति । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )
प्रेम -1 ***** नहीं होती कोई गली पगडण्डी या कि सड़क तो भी आऊँगा मुक्ताकाश पर रचते हुए इन्द्रधनुष । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )
तवा ***** चूल्हे पर चढ़ते ही चमक उठती घर भर की आँखें तब मेरी तपस्वी देह से उठने लगती सौंधी बयार चित्तियाँ पडी़ रोटियों की फैल जाती पास पडो़स मुहल्ले तक चौके की गमक जो नाक के जरिये जीभ पर मीठा स्वाद रचती आँतों तक लार लार समा जाती खिल...
खिलखिलाती नदी **************** चिन्ता में डूबी नदी सूखकर काँटा होती चिढ़चिढी़ होते ही रुक जाती धार और क्रोध से बन जाती रेत ओ ! मेरे गाँव की नदी हँसती रह हरदम हरदम हँसती नदी हर हाल में पानीदार नदी होती है !! (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ”...
निठल्ली नहीं बैठती तुम्हारी दिल्ली *********** सुना है रस्म अदायगी में माहिर है तुम्हारी दिल्ली वह जितनी तन्मयता से राजघाट पर श्रध्दार्पण करने वालों के साथ ईश्वर अल्ला तेरे नाम गाती है उतनी ही एकाग्रता से राष्टृपिताओं की हत्या करने वालों के पथ पर माखनलाल चतुर्वेदी के वनमाली की तरह...
गालियाँ जब भी ************** गालियाँ जब भी भूगोल की सरहदें पार करतीं पहले पहल इतिहास ही घायल होता हर बार झुलसता उसका ही चेहरा । राजनीति के फरेब रचती गालियाँ जब लोगों के दिलों में उतरतीं तो पहले पहल दंगों का नंगापन लिये षड्यंत्र करने लगता अँधेरा। और रोशनी की...
डूबकर डूबा नही हरसूद ******************** (लम्बी कविता का अंश ) इसी नर्मदा की पावन देही की शल्य क्रिया कर वास्तुविदों संग तुमने ऊँचा बाँँध बनाया और छीन ली रेवा उन आदि निवासी वनचर वनवासी समाज से जो मेहनत कर रेवा के बल पर जीते थे उन्हें भिखारी बना दिया युग...
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