डूब कर डूबा नहीं हरसूद

डूब कर डूबा नहीं हरसूद
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(कविता का अंश )
देख रही सरकार
व्यवस्था की नजरों से इन सारे दृश्यों को
और घडियाली आँसू की स्याही से
पुनर्वास के पट्टों पर
आश्वासन लिखती
छपवाती इसी स्याही से
पुनर्वास के झूठे विज्ञापन
और बड़बोले भाषणों की झडी़ लगाये
सुख सपनों के
मर्मान्तक दृश्य देखती रहती
चाहे जहाँ से
व्यवस्था जब हो जाती दर्शक
तब वह करुणा को भी
देखा करती जश्न सरीखी
और ‘करुणा करके करुणानिधि रोये ‘ वाली
उक्ति का स्वाँग रचते हुए
सुदामा को और और सुदामा होने के वास्ते
बेवतन कर सदा सदा को डुबा देती
व्यवस्था जब हो जाती भ्रष्ट
तो वह लोक कल्याण के नाम पर
आश्वासनों के जाल बनाने की फैक्टिरयाँ खोल देती
जिन्हें हर जगह फैलाती जाती
अँधेरों में
ताकि लोग —
उजालों की उत्सुकता लिए उनके इन्तजार में चुपचाप बैठे रहें
और उजालें कभी प्रकट ही न हो सकें
इसका प्रबंध वह पहले से कर लेती
व्यवस्था जब भाषणबाज हो जाती
तब वह —
बड़ बोलेपन की
ऐसी गूँज उठाती हर जगह
कि उसी उसी के महाघोष से
भरा समाज उसी उसी की
जय जयकार के मोह में डूबा
उबर ही नहीं पाता संकटों से अपने
भाषणबाज व्यवस्था !!!
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी की लंबी कविता ” डूब कर डूबा नही हरसूद ” से एक अंश उद्धृत )

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