डूबकर डूबा नहीं हरसूद

डूबकर डूबा नहीं हरसूद
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गाँव के गाँव
जाने कितनी -कितनी बार
उजाडे़ जाते रहे राज -लिप्सा में
मनाये जाते रहे
तानाशाहों द्वारा हत्या के जश्न बार -बार
यह भी हुआ कि तबाह होती रही प्रकृति
और दूषित होता रहा पर्यावरण बार- बार
चाहे वह बम विस्फोट हो या गैस रिसन
अथवा न्यूक्लियर विखंडन
होता रहा महानाश सभी से
लेकिन यह त्रासदी हरसूद की
बिलकुल अलग है
जहाँ न तो युध्द लडा़ गया
ना भूकम्प आया
ना लाशों के ढेर लगे
यहाँ तो पेड़ से टूटे हुए पत्तों सरीखी
उजड़ने की भटकन हैं डटकर
और उससे भी अधिक इस बात का दुख कि—
हमारी ही सरकार ने वादे किए झूठे हमी से ।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी की लम्बी कविता ” डूबकर डूबा नहीं हरसूद ” से उद्धृत )

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