दो पल ही बोल लें

दो पल ही बोल लें
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आओ !हम दो पल ही बोल लें!
चुप्पी के बंधन को खोल लें !!
समय तो है रेशम का धागा
जो घिसता ही रहता अभागा
उससे हम गठबंधन तोड़ लें !
हम तुम तो लहरों की जात हैं
सरिता के मन की सौगात हैं
चाहें तो सागर भी तौल लें !!
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के गीत संग्रह ” अँजुरी भर घाम ” से उद्धृत )