Category: नहीं रहने के बाद भी
खिलखिलाती नदी **************** चिन्ता में डूबी नदी सूखकर काँटा होती चिढ़चिढी़ होते ही रुक जाती धार और क्रोध से बन जाती रेत ओ ! मेरे गाँव की नदी हँसती रह हरदम हरदम हँसती नदी हर हाल में पानीदार नदी होती है !! (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ”...
निठल्ली नहीं बैठती तुम्हारी दिल्ली *********** सुना है रस्म अदायगी में माहिर है तुम्हारी दिल्ली वह जितनी तन्मयता से राजघाट पर श्रध्दार्पण करने वालों के साथ ईश्वर अल्ला तेरे नाम गाती है उतनी ही एकाग्रता से राष्टृपिताओं की हत्या करने वालों के पथ पर माखनलाल चतुर्वेदी के वनमाली की तरह...
नामुमकिन ********* नहीं पढी़ होती हयग्रीव की कथा तो मैं भी तुम्हारे द्वारा लगातार परोसी गालियाँ खाते हुए लगातार मुस्कुराता नहीं वत्स ! वेदों को चुराने तक तो क्षम्य था हयग्रीव क्योंकि तब कंठस्थ थे लोक को वेद लेकिन उसने जब पूरा देवलोक ही मांगना चाहा तो अन्तर्ध्यान हो गये...
कहाँ तक बहेगी नदी ***************** नदी किनारे — रेत पर घरघूले बनाते बच्चे नन्हीं इच्छाएँ लिए गृह निर्माण की कलाएँ सीख लेते सीख लेते किलों की रचना और यह भी कि कैसे -कैसे ध्वस्त किया जाता उन्हें रेत पर घरघूले बनाते बच्चे सीख लेते दुनियाभर का निर्माण और यह भी...
आदमी होते ही ************* हमसे ज्यादा कल्याणकारी है पेड़ कार्बन का गरल पान करते और बदले में लुटाते आक्सीजन का अमृत हमसे ज्यादा तत्ववती हैं लताएँ जो फूलती -फलती समर्पित होती हैं हमसे ज्यादा कर्मनिष्ठ हैं मेघ जो सूर्य किरणों की सीढियाँ चढ़ आकाश से मारते धरती पर छलाँग हमसे...