Category: मुक्ति के शंख

0

रुँ -रुँ बाजा रुँगताडा

रुँ -रुँ बाजा रुँगताडा ***************** लगे लबारी ढोल पीटने नाच रहे गलियों में नंगे भिन्न -भिन्न फिरकों में बँट कर भड़काते रहते दंगे ऐसे ऐसे काम करे ये ज्यों यमराजों के पाडा़ रुँ -रुँ – – – – -!! समीकरण सब फेल हो रहे अव्वल पास हुई बेकारी नौजवान लाचार...

0

रुँ-रुँ बाजा रुँगताडा़

रुँ-रुँ बाजा रुँगताडा़ ***************** (21/5/21 के अंश से आगे ) ये सारी सुविधाएँ ओढे़ हमको नहीं नसीब रोटियाँ उन पर ऋतुएँ मेहरबान हैं हमें मिली केवल लँगोटियाँ तिसपर भी वे हमें पेरते गर्मी हो या हो जाडा़ रुँ -रुँ – – – ! ! हत्यारे आते हैं झटपट जाने कहाँ...

0

रुँ -रुँ बाजा रुँगताडा़

रुँ -रुँ बाजा रुँगताडा़ ****************** रूँ -रुँ बाजा रुँगताडा़ रुँगताडा़ भई रुँगताडा़ टी .व्ही .पर ऐलान हुआ वन में गूँजी हुआ- हुआ चोर उच्चके पायेंगे बिन मेहनत मालपुआ अगली सदी उन्हीं के नाम जो सीखेगा गुनताडा़ रुँ -रुँ बाजा रुँगताडा़ – – -! ! जिनको होना था लकीर में वे...

0

विजय

विजय ****** पाँव मेरे बहुत जिद्दी हो गये हैं इन्हें चलने के अलावा सूझता कुछ भी नहीं और तेरा शुक्रिया कर लूँ कि तूने व्यथाएँ इतनी बिछा दी राह पर कि उनसे बात करते सफर कटता जा रहा है किन्तु आकर देख तो लो ये व्यथाएँ जो तुम्हारी भेंट थीं...

0

जीवन

जीवन ****** तमाम पंखुरियाँ झर जाने के बाद सुगंध का अहसास फिर भी रहेगा घर-घर , वन -वन झर रहा गुलाब -सा जीवन ।। (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के गीत संग्रह ” मुक्ति के शंख ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/

0

मत करो

मत करो ******** मोड़ चाहे सफर के हों या सड़क के -भले लगते हैं गुजर करके सुरंगों से आ रहे वे लोग हो चुका जिनके जेहन में आत्मघाती रोग जहाँ देखो वहीं से वे गले लगते हैं बढ़ गये जो। भुलावों में मरुथलों की ओर जिन्दगी के साथ जिनकी बँध...

0

गीतों के

गीतों के ******** गीतों के हरे भरे नंदन में जाने ये क्या हुआ ? कोसों तक उठती थी टेसू की सुर्ख हँसी कोसों तक महुए की मनुहारें सुनते थे कोसों से दूधई की धवल देह दिखती थी कोसों से रींझा की पुष्प गंध आती थी हैंकडी़ मिटाती थी मौलसिरी चन्दन...