प्रेम-2
प्रेम-2 ******* ओठों से फूट पडा़ झरना पपीहरा पा गया तृप्ति । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/
प्रेम-2 ******* ओठों से फूट पडा़ झरना पपीहरा पा गया तृप्ति । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/
प्रेम -1 ***** नहीं होती कोई गली पगडण्डी या कि सड़क तो भी आऊँगा मुक्ताकाश पर रचते हुए इन्द्रधनुष । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/
सूरज ****** मैंने आज सूरज को बदलिययों से छेड़छाड़ करते देखा मैंने आज सूरज को इन्द्रधनुष रचते देखा मैंने आज फिर से जाना कि सूरज के पास धूप ही नहीं सात रंग भी हैं मेरा दोस्त अब थकेगा नहीं कभ्भी – – -!! (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह...
ऐसे में कैसे -2 ********** दिन भर भटक कर लौटी चिडियाँ जब शाम को पनघट के उस पीपल पर फुदक फुदक कर गाती है तो ऐसे में उन्हें चुप करने के लिए अचानक धमाका करने या पीपल पर पहरा बिठाने का क्या अर्थ होता है ? (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी...
ऐसे में कैसे ********** जुबानों पर कुण्डियाँ लगी है दस्तकें तक डूब जाती इस महाचुप्पी में ऐसे में कोई भी कैसे गा सकता कोई छन्द क्योंकि जब जुबानें बन्द हो जाती हैं तो कान -नाक -आँख सभी हो जाते बन्द सबके सब पटक दिये जाते इस महाचुप्पी में मैंने यहीं...
नदी -4 ******** फिर बोली नदी — मैं अब बारहों महीने बीमार हूँ मत छुओ ,छुओ मत मेरे गर्भ में फैक्टरियों का तेजाब पल रहा है मेरी इस हालत के जवाबदार तुम हो तुम तुम सब जब तीमारदार ही बिगाड़ दे कोख खो दे संयम तो कहाँबचेगी अस्मत ? मत...
नदी -3 ******* बोली नदी — कोई न कोई लड़की जब -तब डूब जाती मेरे भीतर अंधेरे में सूरज का अहसास खोकर सुबह वह एक चर्चा बनती फूल कर तैरती लाश के रुप में तब तनकर चलने की कोई भी उमंग नही होती तुम्हारे पास और मेरे पास होती है...