Category: कविता

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प्रेम -4

प्रेम -4 ******* जब नहीं होती पास तो होती एक कविता ठीक तुम्हारी तरह होने पर होती तुम एक कविता कविता की तरह । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/

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प्रेम -3

प्रेम -3 ******* तुमने देखा और मैं आकाश हो गया एक दम तना हुआ । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/

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प्रेम-2

प्रेम-2 ******* ओठों से फूट पडा़ झरना पपीहरा पा गया तृप्ति । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/

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प्रेम -1

प्रेम -1 ***** नहीं होती कोई गली पगडण्डी या कि सड़क तो भी आऊँगा मुक्ताकाश पर रचते हुए इन्द्रधनुष । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/

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तवा

तवा ***** चूल्हे पर चढ़ते ही चमक उठती घर भर की आँखें तब मेरी तपस्वी देह से उठने लगती सौंधी बयार चित्तियाँ पडी़ रोटियों की फैल जाती पास पडो़स मुहल्ले तक चौके की गमक जो नाक के जरिये जीभ पर मीठा स्वाद रचती आँतों तक लार लार समा जाती खिल...

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खिलखिलाती नदी

खिलखिलाती नदी **************** चिन्ता में डूबी नदी सूखकर काँटा होती चिढ़चिढी़ होते ही रुक जाती धार और क्रोध से बन जाती रेत ओ ! मेरे गाँव की नदी हँसती रह हरदम हरदम हँसती नदी हर हाल में पानीदार नदी होती है !! (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ”...

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निठल्ली नहीं बैठती तुम्हारी दिल्ली

निठल्ली नहीं बैठती तुम्हारी दिल्ली *********** सुना है रस्म अदायगी में माहिर है तुम्हारी दिल्ली वह जितनी तन्मयता से राजघाट पर श्रध्दार्पण करने वालों के साथ ईश्वर अल्ला तेरे नाम गाती है उतनी ही एकाग्रता से राष्टृपिताओं की हत्या करने वालों के पथ पर माखनलाल चतुर्वेदी के वनमाली की तरह...

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गालियाँ जब भी

गालियाँ जब भी ************** गालियाँ जब भी भूगोल की सरहदें पार करतीं पहले पहल इतिहास ही घायल होता हर बार झुलसता उसका ही चेहरा । राजनीति के फरेब रचती गालियाँ जब लोगों के दिलों में उतरतीं तो पहले पहल दंगों का नंगापन लिये षड्यंत्र करने लगता अँधेरा। और रोशनी की...

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डूबकर डूबा नही हरसूद

डूबकर डूबा नही हरसूद ******************** (लम्बी कविता का अंश ) इसी नर्मदा की पावन देही की शल्य क्रिया कर वास्तुविदों संग तुमने ऊँचा बाँँध बनाया और छीन ली रेवा उन आदि निवासी वनचर वनवासी समाज से जो मेहनत कर रेवा के बल पर जीते थे उन्हें भिखारी बना दिया युग...

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नामुमकिन

नामुमकिन ********* नहीं पढी़ होती हयग्रीव की कथा तो मैं भी तुम्हारे द्वारा लगातार परोसी गालियाँ खाते हुए लगातार मुस्कुराता नहीं वत्स ! वेदों को चुराने तक तो क्षम्य था हयग्रीव क्योंकि तब कंठस्थ थे लोक को वेद लेकिन उसने जब पूरा देवलोक ही मांगना चाहा तो अन्तर्ध्यान हो गये...