बोलो अब

बोलो अब
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एक साँस ठण्डी है एक गरम
बोलो अब क्या करें हम ?
एक तरफ सूरज है
चाँद एक ओर
आसपास बेईमान
बीच बडे़ चोर
पहले पर रिश्वतिया समय बेशरम
बोलो अब क्या करें हम ? ?
प्रहलाद जल रहा
होलिका प्रसन्न
अमृत घट फोड़ रहे
जहरीले यत्न
फैल रहा द्वार -द्वार भरम ही भरम
बोलो अब क्या करें हम ? ? ?
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के गीत संग्रह ” अँजुरी भर घाम ” से उद्धृत )