नदी -4

नदी -4
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फिर बोली नदी —
मैं अब
बारहों महीने बीमार हूँ
मत छुओ ,छुओ मत
मेरे गर्भ में
फैक्टरियों का तेजाब पल रहा है
मेरी इस हालत के
जवाबदार तुम हो तुम
तुम सब
जब तीमारदार ही
बिगाड़ दे कोख
खो दे संयम
तो कहाँबचेगी अस्मत ?
मत छुओ ,छुओ मत
मैं अब बारहों महीने बीमार हूँ
कुछ दिन बरसात के छोड़ कर ।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )