कहाँ तक बहेगी नदी

कहाँ तक बहेगी नदी
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नदी किनारे —
रेत पर घरघूले बनाते बच्चे
नन्हीं इच्छाएँ लिए
गृह निर्माण की
कलाएँ सीख लेते
सीख लेते
किलों की रचना
और यह भी
कि कैसे -कैसे
ध्वस्त किया जाता उन्हें
रेत पर घरघूले बनाते बच्चे
सीख लेते
दुनियाभर का निर्माण
और यह भी
कि कहाँ से प्रकट होकर
कहाँ तक बहेगी नदी ! !
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” नहीं रहने के बाद भी ” से उदधृत )