निठल्ली नहीं बैठती तुम्हारी दिल्ली

निठल्ली नहीं बैठती तुम्हारी दिल्ली
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सुना है
रस्म अदायगी में
माहिर है तुम्हारी दिल्ली
वह जितनी तन्मयता से
राजघाट पर
श्रध्दार्पण करने वालों के साथ
ईश्वर अल्ला तेरे नाम गाती है
उतनी ही एकाग्रता से
राष्टृपिताओं की हत्या करने वालों के पथ पर
माखनलाल चतुर्वेदी के वनमाली की तरह पुष्प बिछाना भी नही भूलती
जाने कितनी विपरीत जिन्दगियाँ
एक साथ जी लेती है दिल्ली
जैसे —
कभी होती शेर तो कभी बिल्ली
लेकिन एक बात तो
बिलकुल जाहिर है
कि किसी भी क्षण —
निठल्ली नहीं बैठती तुम्हारी दिल्ली ! !
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “नहीं रहने के बाद भी ” से उद्धृत )

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