प्रेम -8

प्रेम -8
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कितना
धुला -धुला है पठार
हाथ हिला -हिला कर
टेर रहा लगातार
सुनो और
देखो उधर ।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )

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