मुक्तक

मुक्तक
******
जो सहज ही चल पडे़ वह रीत है ।
जो अधर पर मौन है वह प्रीत है ।।
चपल बालक- सा उठे जो चौंककर —
समझ लो बस वह मचलता गीत है ।।
*********************
जीवन को घूंट दो घूंट ही पी लेने दो ।
इन उखडी़ साँसों को जी लेने दो ।।
मैं कोई महाकाव्य नहीं हूँ दोस्तों —
मुझे एकाध शब्द बनकर ही जी लेने दो ।।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के गीत संग्रह “अँजुरी भर घाम ” से उद्धृत )

You may also like...

Leave a Reply