घर -घर तुम बिखराओ फूल

घर -घर तुम बिखराओ फूल
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हर समय खिले-से रहते जो
पथ पर वे बिखराते फूल
पल पल में रोते रहते जो
पथ पर वे बरसाते शूल
नहीं कहीं कड़वाहट घोलो
नहीं कहीं छितराओ धूल
घर घर नेह -गंध बरसाओ
घर घर तुम बिखराओ फूल ।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के गीत संग्रह “अँजुरी भर घाम “से उद्धृत )

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