लहूलुहान है नदी ! – नहीं रहने के बाद भी

Book Cover - Nahi Rahne ke baad bhi

लहूलुहान है नदी !

कविता संग्रह (Nahi Rahne Ke Baad Bhi नहीं रहने के बाद भी
रचनाकारश्री प्रेमशंकर रघुवंशी.

गटरों के तेज़ाब से आहत
छाले पड़ी देह पर
बेशररम की झाड़ियाँ उगाए
लहूलुहान है नदी
तटों में दम नहीं कि
एड़ियाँ घिसने के पत्थर ही बचा लें
बचा लें बच्चों के घरघूले
जड़ें सभ्यता संस्कृति की
सन्नाटे की टिकटी पर
मकड़जाल से जकड़ी
आकाश ताकती
संज्ञाशून्य है नदी!!

लहूलुहान है नदी !- कविता संग्रह (Nahi Rahne Ke Baad Bhi नहीं रहने के बाद भी रचनाकार – श्री प्रेमशंकर रघुवंशी.

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