सिल देना चाहती हैं नदियाँ – “नहीं रहने के बाद भी”

सिल देना चाहती हैं नदियाँ ———————————- कितने भले रहे होंगे वे जिन्होंने रची होगी नदियाँ पाला, पोसा ,बड़ा किया होगा रचे होंगे – तीज -त्यौहार -उत्सव -मेले और कितने बुरे हुए जा रहे हम जो घोले जा रहे विष बहाए जा रहे सड़ाँध इनमें और चाहे जहाँ हाथ -पाँव बाँध...