“संविधान के पृष्ठ पर “कविता का शेष और अन्तिम अंश
इसके बाद वे सबअपने -अपने तंतर -मंतरअपने -अपने धतकरम मेंमशगूल हो जाते हैं——-और स्वाधीनता इन कारनामों को देखते- सुनतेजाने कब सो जाती फिर से जिसे उठाने के बहानेबीच -बीच में उसके कान के पास जाकर जोर से समाजवाद चिल्लाता है ‘,तो कोई साम्यवाद, कोई बाज़ारवाद, कोई सम्प्रदायवाद, तो कोई अलगाववाद...