देखा, बिना नाम के तुम्हें
देखा, बिना नाम के तुम्हें देखा, बिना नाम के तुम्हें तो, सही दिखायी दीं तुम। खुद को भी इसी तरह देखा तो सही -सही देख लिया खुद को । अब, बिना किसी नाम के मिले हम जैसे कि नदी, नदी से मिलकर नदी होती है और सागर से उसकी खारी...
देखा, बिना नाम के तुम्हें देखा, बिना नाम के तुम्हें तो, सही दिखायी दीं तुम। खुद को भी इसी तरह देखा तो सही -सही देख लिया खुद को । अब, बिना किसी नाम के मिले हम जैसे कि नदी, नदी से मिलकर नदी होती है और सागर से उसकी खारी...
प्रेमशंकर रघुवंशी का नया काव्य संग्रह ‘देखा, बिना नाम के तुम्हें’ अपने नाम के अनुरूप उस काव्य दृष्टि का परिचय देता है, जो जीवन-जगत के दृश्य-अदृश्य उन हलचलों-खामोशियों को देख लेती है जिनका आमतौर पर कोई नात नहीं होता। अनाम भावनाओं-संवेदनाओं को एक नाम देने की काव्यगत कोशिश...