प्रेम -9

प्रेम -9
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यदि तुम अपनी गंध ,
दमक,सिहरन,स्वर
और उष्मा नहीं बोती
तो ये जमीन
कहीं की भी
नहीं होती ।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत )

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