प्रेमशंकर रघुवंशीजी की कलम से

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मुक्तक

मुक्तक ****** जो सहज ही चल पडे़ वह रीत है । जो अधर पर मौन है वह प्रीत है ।। चपल बालक- सा उठे जो चौंककर — समझ लो बस वह मचलता गीत है ।। ********************* जीवन को घूंट दो घूंट ही पी लेने दो । इन उखडी़ साँसों को...

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लौट रहे हैं गाँव में

लौट रहे हैं गाँव में **************** बहुत दूर से खलिहानों तक हल्की हल्की लाल लाल सी धूल उड़ रही निश्चय ही चेतुए खेत से संझ्झा के संग लौट रहें हैं गाँव में बहुत दूर से मगरी मगरी घुंटुरियों की ताल आ रही निश्चय ही जंगल से छककर सभी मवेशी लौट...

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एक बार फिर

एक बार फिर ************ इसके घर बरसात हमारा घर सूखा ! इसके घर में नाज हमारा घर भूखा ! कैसा है इंसान कि इस पर लानत है ! इसके तन पर तेल हमारा तन सूखा ! इसके घर नाज – – – – अपने हित के लिये रात दिन दौड़...

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डूबकर डूबा नहीं हरसूद

डूबकर डूबा नहीं हरसूद गाँव के गाँव जाने कितनी -कितनी बार उजाडे़ जाते रहे राज -लिप्सा में मनाये जाते रहे तानाशाहों द्वारा हत्या के जश्न बार -बार यह भी हुआ कि तबाह होती रही प्रकृति और दूषित होता रहा पर्यावरण बार- बार चाहे वह बम विस्फोट हो या गैस रिसन...

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डूबकर डूबा नहीं हरसूद

डूबकर डूबा नहीं हरसूद गाँव के गाँव जाने कितनी -कितनी बार उजाडे़ जाते रहे राज -लिप्सा में मनाये जाते रहे तानाशाहों द्वारा हत्या के जश्न बार -बार यह भी हुआ कि तबाह होती रही प्रकृति और दूषित होता रहा पर्यावरण बार- बार चाहे वह बम विस्फोट हो या गैस रिसन...

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डूबकर डूबा नहीं हरसूद

डूबकर डूबा नहीं हरसूद गाँव के गाँव जाने कितनी -कितनी बार उजाडे़ जाते रहे राज -लिप्सा में मनाये जाते रहे तानाशाहों द्वारा हत्या के जश्न बार -बार यह भी हुआ कि तबाह होती रही प्रकृति और दूषित होता रहा पर्यावरण बार- बार चाहे वह बम विस्फोट हो या गैस रिसन...

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हर जगह अब भी

हर जगह अब भी *************** गाँव में परिवार से जाना जाता कस्बे में तहसील से शहर में परगने से इलाकों में प्रदेश से परदेश में भारत से जाना जाता द्वीपों में एशिया महाद्वीप से कहने को तो विश्व मानव के नाम से भी जाना जाता लेकिन हर जगह अब भी...

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भरी पूरी सृष्टि

भरी पूरी सृष्टि *********** मुझसे अकेले मिलते वक्त भी अकेले नहीं होते एक पूरे परिवेश के साथ मिलते हो तुम बातें करते तो लगता — कि झर रहे हों पुष्प आश्वस्ति के शब्द शब्द अनुराग की अर्थलय में डूबे होते हैं तुम्हारे और भाव ऐसे — मानों फलों में पकते...

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कवि की खोज में भटकती कविता

कवि की खोज में भटकती कविता ********************** आश्वस्त होना चाहती कि मुझे — कुछ दूर ही सही जिंदगी के पास तो ले चलोगे कवि आश्वस्त होना चाहती कि मुझे — गलत करने -कहने के लिए विवश तो नहीं करोगे तुम आश्वस्त होना चाहती कि मुझे — किसी दरबार की भोग्या...

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हरे पेड़ यूँ लगते

हरे पेड़ यूँ लगते ************* हरे पेड़ यूँ लगते मानो पूजा गॄह हों हरे भरे सुबह शाम जिनकी शीतल छाया सजदे की मुद्रा में नत हों क्षितिजों को छू लेती हैं जिनके सिर पर स्वर्णकलश सी सूर्य किरण चमका करती हैं जिनपर बने घोंसले हर दिन साँझ सकारे उठ उठकर...