नहीं रहने के बाद भी

संविधान के पृष्ठ पर
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—– तो एक जुट होकर
स्वतंत्रता संग्राम में उतरने का
तय किया उनने
फिर ऐसा हुआ कि
पूरा का पूरा राष्ट्र ही
हो लिया साथ
——सभी को साथ साथ
एकजुट देख अपनी
सिट्टी पिट्टी भूलकर सात
समंदर पार चली गई
परतंत्रता
और बलिवेदी पर सिध्द मंत्र की तरह प्रकट हो गई
स्वाधीनता सबके बीच

स्वाधीनता बनाम आजादी
बनाम मुक्ति ने देखा
कि उसे अपने बीच लाने के
संघर्ष में अनेक शहीद हुए और कई अब भी घायल हैं
तो उसने उन सभी के जख्मों को अपने हाथों धो -पौंछकर
उन पर मलहम-पट्टी कर दी
और कृतज्ञ सुराज ने उन सभी की सेहत के लिए बाँध दिए
मासिक वजीफे
——-अब तक सभी लोगों ने
घेर लिया उसे और
मिलकर इतना नाचे कि
अपनी सुधबुध ही खो बैठे
इनके अखण्ड नाच को
देखते स्वाधीनता को झपकियाँ आने लगी ,
तो वह जयस्तम्भ से टिककर बैठ गई –
फिर वहीं लेट गई (कविता का शेष अंश कल)
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “नहीं रहने के बाद भी “से उद्धृत)

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