जीवन

जीवन
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तमाम पंखुरियाँ
झर जाने के बाद
सुगंध का
अहसास
फिर भी रहेगा
घर-घर , वन -वन
झर रहा
गुलाब -सा जीवन ।।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के गीत संग्रह ” मुक्ति के शंख ” से उद्धृत )

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