Category: आज की कविता

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सिल देना चाहती हैं नदियाँ – “नहीं रहने के बाद भी”

सिल देना चाहती हैं नदियाँ ———————————- कितने भले रहे होंगे वे जिन्होंने रची होगी नदियाँ पाला, पोसा ,बड़ा किया होगा रचे होंगे – तीज -त्यौहार -उत्सव -मेले और कितने बुरे हुए जा रहे हम जो घोले जा रहे विष बहाए जा रहे सड़ाँध इनमें और चाहे जहाँ हाथ -पाँव बाँध...

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जन -जन को

जन -जन को —————— कई मर्तबा पीटा गया /पहली बार तब /जब मैं अपने गाँव जमानी की पाठशाला में /प्रभात फेरी के बाद /झण्डा गीत गाते हुए /खलिहान की जामुन पर /तिरंगा लहराकर नीचे उतरा था / दूसरी मर्तबा का तो /मेरे बाल सखाओं को भी पता होगा /जब शिवपुर...

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इच्छा शक्ति

इच्छा शक्ति—————-वे जिस चीज कोभी देखतेवही बनना चाहतेजबकिपेड़ के पास पहुँचकरपेड़नदी के पास पहुँचकरनदीखेत के पास पहुँचकरफसलचिड़िया के पास पहुँचकरचिड़ियाऔर आदमी के पास पहुँचकरआदमी नहीं बन सकेवे कुछ भी नहींबन सकेकुछ भी बनने की इच्छा शक्तिउनके पास कभी रही ही नहीं।(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “मँँजती धुलती पतीली...

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खरा होने के वास्ते – “मँजती धुलती पतीली”

खरा होने के वास्ते (“मँजती धुलती पतीली“) ~~~~~~~~~~~~ जब आपसी संवाद से ज्यादा गप्पों में कटने लगे दिन तो समझ लो — ठहराव का एक पहाड़ खड़ा होने लगा है अकर्मण्यता की पन्नियाँ और यह भी स्वीकार लो कि — किसी भी क्षण से लाश की तरह निष्प्राण हो सकती...