Category: आज की कविता

आज की कविता में आप नित्य रघुवंशीजी के द्वारा लिखी हुई रचनाओं के किसी एक भाग को पढ़ सकतें हैं और उन कविता कि विवेचना का अध्ययन कर सकते हैं .

Dr. Premshankar Raghuvanshi.

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अग्निमुख –

अग्निमुख *** रजकण से लेकर चट्टान बनने तक की प्रक्रिया में तुमने —- आग को हमेशा -हमेशा अपनी छाती में छुपाये रखा चट्टानों ! कब तक और दोगी सृष्टिक्रम की साक्षी एक बार अपने अग्निमुख तो खोलो !! ( श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह —— “पहाड़ों के बीच...

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अकेलापन – अन्तस के निर्झर

अकेलापन -4 ************ अकेलापन : अशोक होकर भी शोक बोता है विजयी होकर भी पराजित कर्लिंग होता है । (श्री प्रेम शंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” अन्तस के निर्झर ” से उद्धृत ) आज की कविता में अकेलेपन की मनःस्थिति के अन्तर में समाए गम और मन के...

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पानी में

पानी में ******* शीतलता है ज्वाला भी है पानी में संजीवनी है हलाहल भी पानी में गंगा रेवा सागर की भी संस्कृतियाँ है पानी में कमला भी है रंभा भी है पानी में वीणा ध्वनि अनुगूँज शंख की पानी में धन्वंतरि की औषधसिध्दि पानी में दूध सरीखी फेन उठाती कामधेनु...

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ऐसे में कैसे

ऐसे में कैसे ********* ऊँट चाहे जिस करवट बैठे रेगिस्तान में अच्छा लगता है जहाँ वह कररवटें बदल -बदल कर रेत के पहाडो़ से खुद को और दूसरों को बचाता है लेकिन जब वह बगीचों में आने पर भी करवटें लेना नही छोडे़ तो ऐसे में क्या पूरे बगीचे को...

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बोलो गम

बोलो गम ********* बोल भाई ! बोलो गम अब तो शेष रहे हम तुम ! बोलो भाई बोलो गम चोर बडा़ या नंगा ऊँचा है न किसी से कोई कम ! उन्हें सिर्फ खुद की चिंता है चाहे जग हो नरम गरम ! रहबर तो दाखिल दफ्तर हैं रखे जहाँ...

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बौराया प्यार दो

बौराया प्यार दो ************** बासंती बेला में बौराया प्यार दो –। चाहे दो पल को ही मौसम का ज्वार दो ।। रोक लो मुझे तनिक अमुवा की छाँव में बुलबुल की बस्ती में कोयल के गाँव में मौसम से मेरा तन -मन सिंगार दो । बोर दो मुझे तनिक बौराई...

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रुँ -रुँ बाजा रुँगताडा

रुँ -रुँ बाजा रुँगताडा ***************** लगे लबारी ढोल पीटने नाच रहे गलियों में नंगे भिन्न -भिन्न फिरकों में बँट कर भड़काते रहते दंगे ऐसे ऐसे काम करे ये ज्यों यमराजों के पाडा़ रुँ -रुँ – – – – -!! समीकरण सब फेल हो रहे अव्वल पास हुई बेकारी नौजवान लाचार...

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रुँ-रुँ बाजा रुँगताडा़

रुँ-रुँ बाजा रुँगताडा़ ***************** (21/5/21 के अंश से आगे ) ये सारी सुविधाएँ ओढे़ हमको नहीं नसीब रोटियाँ उन पर ऋतुएँ मेहरबान हैं हमें मिली केवल लँगोटियाँ तिसपर भी वे हमें पेरते गर्मी हो या हो जाडा़ रुँ -रुँ – – – ! ! हत्यारे आते हैं झटपट जाने कहाँ...

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रुँ -रुँ बाजा रुँगताडा़

रुँ -रुँ बाजा रुँगताडा़ ****************** रूँ -रुँ बाजा रुँगताडा़ रुँगताडा़ भई रुँगताडा़ टी .व्ही .पर ऐलान हुआ वन में गूँजी हुआ- हुआ चोर उच्चके पायेंगे बिन मेहनत मालपुआ अगली सदी उन्हीं के नाम जो सीखेगा गुनताडा़ रुँ -रुँ बाजा रुँगताडा़ – – -! ! जिनको होना था लकीर में वे...

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पतझर के बाद गुलमोहर

पतझर के बाद गुलमोहर ******************** (1) हरी देह पर लाल हँसी है दृष्टि सृष्टि की यहाँ फँसी है कल था जोगी पूर्ण दिगम्बर मस्ती उसमें आज बसी है । (2) जो विदेह था हुआ सदेही मनुआ नहीं रहा वश में ही । (3) भूत पछाडा़ जब पतझर का रुप सिंगारा...