अग्निमुख –
अग्निमुख *** रजकण से लेकर चट्टान बनने तक की प्रक्रिया में तुमने —- आग को हमेशा -हमेशा अपनी छाती में छुपाये रखा चट्टानों ! कब तक और दोगी सृष्टिक्रम की साक्षी एक बार अपने अग्निमुख तो खोलो !! ( श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह —— “पहाड़ों के बीच...