प्रश्न
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प्रेमशंकर रघुवंशी का नया काव्य संग्रह ‘देखा, बिना नाम के तुम्हें’ अपने नाम के अनुरूप उस काव्य दृष्टि का परिचय देता है, जो जीवन-जगत के दृश्य-अदृश्य उन हलचलों-खामोशियों को देख लेती है जिनका आमतौर पर कोई नात नहीं होता। अनाम भावनाओं-संवेदनाओं को एक नाम देने की काव्यगत कोशिश...
१९९८ में प्रकाशित मुक्ति के शंख प्रेमशंकर रघुवंशी का दूसरा नवगीत संग्रह है। ८१ गीतों के इस संग्रह के प्रकाशक हैं परिमल प्रकाशन, १७ एम.आई.जी. बाघम्बरी आवास योजना, अल्लापुर, इलाहाबाद-२११००६, इसमें कुल १०४ पृष्ठ हैं और इसका मूल्य है- १०० रुपये। इस संग्रह के दो भाग हैं। पहले भाग का शीर्षक है- ऐसा...