Category: सतपुड़ा के शिखरों से

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बोलो गम

बोलो गम ********* बोल भाई ! बोलो गम अब तो शेष रहे हम तुम ! बोलो भाई बोलो गम चोर बडा़ या नंगा ऊँचा है न किसी से कोई कम ! उन्हें सिर्फ खुद की चिंता है चाहे जग हो नरम गरम ! रहबर तो दाखिल दफ्तर हैं रखे जहाँ...

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पतझर के बाद गुलमोहर

पतझर के बाद गुलमोहर ******************** (1) हरी देह पर लाल हँसी है दृष्टि सृष्टि की यहाँ फँसी है कल था जोगी पूर्ण दिगम्बर मस्ती उसमें आज बसी है । (2) जो विदेह था हुआ सदेही मनुआ नहीं रहा वश में ही । (3) भूत पछाडा़ जब पतझर का रुप सिंगारा...

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कुछ वैसा ही

कुछ वैसा ही *********** लिख लिखकर मैं होता प्रसन्न पढ़कर बतलाता बार बार ! ! सूरज लिखता ज्यों ज्योतिपत्र लिखता चंदा ज्यों धवल प्यार तारे लिखते ज्यों नभ गंगा बादल ज्यों लिखते धुआँधार कुछ वैसा ही मैं भी लिखता लिख लिखकर पढ़ता बार बार ! धरती ज्यों सिरजें सौंधापन पर्वत...

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लौट रहे हैं गाँव में

लौट रहे हैं गाँव में **************** बहुत दूर से खलिहानों तक हल्की हल्की लाल लाल सी धूल उड़ रही निश्चय ही चेतुए खेत से संझ्झा के संग लौट रहें हैं गाँव में बहुत दूर से मगरी मगरी घुंटुरियों की ताल आ रही निश्चय ही जंगल से छककर सभी मवेशी लौट...

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एक बार फिर

एक बार फिर ************ इसके घर बरसात हमारा घर सूखा ! इसके घर में नाज हमारा घर भूखा ! कैसा है इंसान कि इस पर लानत है ! इसके तन पर तेल हमारा तन सूखा ! इसके घर नाज – – – – अपने हित के लिये रात दिन दौड़...