ऐसे में कैसे
ऐसे में कैसे ********* ऊँट चाहे जिस करवट बैठे रेगिस्तान में अच्छा लगता है जहाँ वह कररवटें बदल -बदल कर रेत के पहाडो़ से खुद को और दूसरों को बचाता है लेकिन जब वह बगीचों में आने पर भी करवटें लेना नही छोडे़ तो ऐसे में क्या पूरे बगीचे को...
ऐसे में कैसे ********* ऊँट चाहे जिस करवट बैठे रेगिस्तान में अच्छा लगता है जहाँ वह कररवटें बदल -बदल कर रेत के पहाडो़ से खुद को और दूसरों को बचाता है लेकिन जब वह बगीचों में आने पर भी करवटें लेना नही छोडे़ तो ऐसे में क्या पूरे बगीचे को...
हमें ही परचानी होगी आग ********************** लोग हैं कि कानून बना मिटा रहे लोग हैं कि रेलों -बसों-यानों में आ -जा रहे लोग हैं कि कोठियों सहित नम्बर दो हुए जा रहे लोग है कि झोपडि़यों सहित बंधुआ किये जा रहे लोग है कि तन -बदन के धंधों में है...
अरदास करते वक्त **************** देवालय में घुस आया दैत्य पूजा के शब्दोच्चार में निखर रहा जिस का रुप जय -जय कार के बीच घूरता युवतियों को अपने साम्राज्य की चीजों के माफिक पूजा-प्रार्थना घर हो या कोई भी जगह सबके सब बन गये उसके निवास तभी तो अर्चना के सडे़...
प्रेम -9 ****** यदि तुम अपनी गंध , दमक,सिहरन,स्वर और उष्मा नहीं बोती तो ये जमीन कहीं की भी नहीं होती । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/
प्रेम -8 ******* कितना धुला -धुला है पठार हाथ हिला -हिला कर टेर रहा लगातार सुनो और देखो उधर । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/
प्रेम -7 ****** छितराने लगे मेघ और शरद की धूप कालने लगी ऊन आकाश में खुलकर (प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/
प्रेम -6 ****** ओफ! कितना कीचड़ यहाँ अब हम अपने खून पसीने से उगायें कमल । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “ तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/
प्रेम -5 ******* शहर में लगी धारा के बावजूद बहती एक धारा मेरे भीतर कल कल – – – – जिसमें नहाकर तनी बन्दूकों के बीच से आ ही गया तुम्हारे पास ताजातरीन । (श्री ब्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत...
प्रेम -4 ******* जब नहीं होती पास तो होती एक कविता ठीक तुम्हारी तरह होने पर होती तुम एक कविता कविता की तरह । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/
प्रेम -3 ******* तुमने देखा और मैं आकाश हो गया एक दम तना हुआ । (श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “तुम पूरी पृथ्वी हो कविता ” से उद्धृत ) Dr. Vinita Raghuvanshipremshankarraghuvanshi.in/