बे मौसम बरसात

बे मौसम बरसात
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नदी की धार के नीचे चमकती बालू
जितनी सुहानी लगती
उतनी ही बुरी लगती घरों में घुसती रेत
चूल्हे या अलाव की आग
जितनी सुहानी लगती
उतनी ही बुरी लगती गाँव तक आती दावानल
पिकासो की गुएर्निका स्पेन के बाहर भी
जितनी सुहानी लगती
उतनी ही बुरी लगती तानाशाह फ्रांको की उस पर प्रशंसा ।
कोढी़ का स्वाभिमान
जितना सुहाना लगता उतना ही बुरा लगता
कोढी़ के हाथ चूमने का प्रदर्शन करता पादरी
वीणा पर थिरकती अँगुलियाँ
जितनी सुहानी लगती
उतनी ही बुरे लगते वीणा के पृष्ठ से कील ठोंकते हाथ
बरसात में झमाझम बरसती बूंदें
जितनी सुहानी लगती
उतनी ही बुरी लगती खेतों पर बरसती बेमौसम बरसात ।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” नर्मदा की लहरों से ” उद्धृत )