Author: admin

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अग्निमुख –

अग्निमुख *** रजकण से लेकर चट्टान बनने तक की प्रक्रिया में तुमने —- आग को हमेशा -हमेशा अपनी छाती में छुपाये रखा चट्टानों ! कब तक और दोगी सृष्टिक्रम की साक्षी एक बार अपने अग्निमुख तो खोलो !! ( श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह —— “पहाड़ों के बीच...

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अकेलापन – अन्तस के निर्झर

अकेलापन -4 ************ अकेलापन : अशोक होकर भी शोक बोता है विजयी होकर भी पराजित कर्लिंग होता है । (श्री प्रेम शंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” अन्तस के निर्झर ” से उद्धृत ) आज की कविता में अकेलेपन की मनःस्थिति के अन्तर में समाए गम और मन के...

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हर जगह अब भी

हर जगह अब भी *************** गाँव में परिवार से जाना जाता कस्बे में तहसील से शहर में परगने से इलाकों में प्रदेश से परदेश में भारत से जाना जाता द्वीपों में एशिया महाद्वीप से कहने को तो विश्व मानव के नाम से भी जाना जाता लेकिन हर जगह अब भी...

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“संविधान के पृष्ठ पर “कविता का शेष और अन्तिम अंश

इसके बाद वे सबअपने -अपने तंतर -मंतरअपने -अपने धतकरम मेंमशगूल हो जाते हैं——-और स्वाधीनता इन कारनामों को देखते- सुनतेजाने कब सो जाती फिर से जिसे उठाने के बहानेबीच -बीच में उसके कान के पास जाकर जोर से समाजवाद चिल्लाता है ‘,तो कोई साम्यवाद, कोई बाज़ारवाद, कोई सम्प्रदायवाद, तो कोई अलगाववाद...