उददेश्‍य

डॉ. विनीता रघुवंशी

वेब साईट क्यों ?

मनुष्य के जीवन में दो दुनिया होती है । एक बाहय दुनिया जो व्यवहार की दुनिया कहलाती है। दूसरी अपने मन की आन्तरिक दुनिया । जिसमें किसी का साझा नही । इसमें आजादी है । बेफिक्री है । चिन्ता है । चेतना है । सृजन की अपार क्षमता है। सब से लगाव है । बोध है । बाहय दुनिया बहुत विस्तृत है । जो सिर्फ वाणी पर आश्रित है । प्रेम के दो अनमोल बोल पर वारी वारी जाती है। जहाँ चिन्ता तो है। पर नजदीकियाँ बडी मुष्किल है। इस आन्तरिक और बाहय दुनिया के बीच व्याप्त है मनुष्य का अन्तर मन । यहीं से उसके व्यक्तित्व का रचाव और बनाव प्रारम्भ होता है ।यहीं से चऱित्र की र्नििर्मति षुरू होती । इन्ही दो दुनिया से मिलकर बनता है लोक। लोक की प्राप्ति ही मनुष्य को मनुष्य के निकट ला खडा करती है । ये पास आने का मन । सबको पाने का मन ही । मनुष्य के भीतर एक अदभुत लोकोत्तर का निर्माण करता है। जहाँ वह निपट अकेला होता है लेकिन सृजन वह सबके लिये करता है ।उसकी चेतना में । उसकी चिन्ता में सब षामिल होते हैं । यह सृजन उसके अपने लिये होते हुए भी सबके लिये होता है । रचनाकार के मन में । चेतना मे ं।ं चिन्ता में । कला की अभिव्यक्ति में सब जगह लोक विद्यमान है । इस तरह उसके पास घर परिवार समाज राज्य देष और विष्व चिन्तन की फिक्र मिलती है । इन्हें सिखलाना इनसे सीख जाना । इन्हें महसूस करना इन्हें आत्मसात कर लेना। यही तो कला का मर्म है ।यही कला का धर्म है। अपनी छटपटाहट को । अपनी बेचैनी को । बयान करने की । बयान करने की व्यवस्था ही कविता बनकर । कहानी बनकर । साहित्य बनकर समाज के सामने आती है। यह संरक्षण की चाह ही व्यक्ति को समाज सापेक्ष बनाती है। वह बचा लेना चाहता है धरती आकाष हवा जल फसलें और ब्रहमाण्ड सूरज चाँद तारे नक्षत्र नदी पहाड जंगल सब ।बस । सब के लिये । यहाँ कोई छल नही । कोई कपट नही ।कोई धोखा नही । कोई पराया नही । सब आत्मीयता के अन्जाने बंधन में बंधें । सब बंधन मुक्त। एक चिन्ता । एक फिक्र । खामोष बेचैनी । कवि मन सदा अषांत ।हमेषा बेचैन । व्याकुल । इस व्याकुलता की भीतरी अनुभूति की अभिव्यक्ति है साहित्य ।ना जाने अन्तस के अन्चीन्हे कोनों से निकलकर कोई भी पात्र चरित्र उभरकर कहानी कविता संस्मरण उपन्यास आदि का हिस्सा बन जाता है । पाठक श्रोता की संवेदना उसे उसी मनोभूमि पर बेझिझक स्वीकार करती है । यह संवेदना का संसार ही लेखक पाठक के बीच की कडी है। जहाँ पहचान की जरूरत नही जहाँ कोई अनपहचाना नही । वैष्विक सत्य का संचरण । सब में समान मूल्यधारा ।सब में चेतना की समानता । सबमें जीवन की धडकनें समान । उल्लास उमंग दुख और परकातरता समान । फिर भेद कहाँ ? केवल अनुभूति में ? केवल चेतना में । केवल करूणा में । वेदना के स्तर पर ? कहाँ ? कहाँ ?इस कहाँ के प्रतिउत्तर की तलाष के लिये ही यह वेब साईट लोक के समक्ष प्रस्तुत है । रचनाकार अपने जीवन की सीमाओं में रहकर लोक ग्राही तो होता है किन्तु लोक से सीधे सीधे संपर्क रत नही हो पाता । यह साईट संपर्क की उस कमी को पूरा करने का कार्य कर सकेगी । रचनाकार की उस अदृष्य अभिलाषा की र्पूिर्त संभवतः इस साईट द्वारा पूरी हो सकेगी । आज तकनीकी ज्ञान अपने उच्चतम स्तर पर उपलब्ध है। प्रत्येक व्यक्ति जिसने जन्म लिया वह इस धरा परए समाज में एक मुकाम बनाता है। एक स्थान बनाता है । एक जगह ढूंढता है । यही स्पेस पाने की इच्छा इस साईट के बनाने में भी बलवती रही । साईट के माध्यम से जन जन तक पहुँचना । कम्प्यूटर मोबाईल और एप के जरिये सब तक पहुँच पाने की लालसा। संवेदनषील व्यक्ति निरन्तर जिज्ञासु होता है । विचार निरन्तर उमडते घुमडते रहते हैं । चिन्तन सदैव मन को मथता रहता है । साहित्य ही वह दिषा है ं। जो उसे बेहतर से बेहतर जगत की ओर ले जाता है । यह मानवीय करूणा का निष्कपट संसार उसके सामने प्रत्यक्ष रहता है । जहाँ केवल सृजन ही सृजन है ध्वंस की तो क्षीण सी संभावना तक नही । जब समग्र संसार एक अमानवीय अकरूण राजनीति अर्थ नीति और समाज के दृष्टिहीन क्रियाकलापों में निमग्न है ।इस दुष्काल में केवल साहित्य ही वह षक्ति है जो मानवता को जाग्रत कर सकता है ं। यह लीजिये आप सब की पहुँच में आप का अपना मनचाहा स्पेस । एयर स्पेस । सब के अवलोकन के लिये । सब के विचार के लिये । सब की जेब में । सबके आसपास । सब का स्वागत । 

सभी का अभिवादन । अभिनन्दन । वन्दन ।