कविता संग्रह
देखा बिना नाम के तुम्हें
देखा, बिना नाम के तुम्हें
तो, सही दिखायी दीं तुम।
खुद को भी इसी तरह देखा
तो सही -सही देख लिया खुद को ।
अब, बिना किसी नाम के मिले हम
जैसे कि नदी, नदी से मिलकर नदी होती है
और सागर से उसकी खारी तासीर जाने बिना
अपना मीठा कोश लुटाती है।
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हो चुका ! समारोह राम-राम
सतपुड़ा जब याद करे – फिर आना
प्रेमशंकर रघुवंशी
लेखक एवं साहित्यकार
डॉ. प्रेमशंकर रघुवंशी
पुरस्कार एवं सम्मान :
मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के –‘दुष्यंत कुमार’ एवं ‘बालकृष्ण शर्मा नवीन’ पुरस्कार, मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का ‘वागीश्वरी पुरस्कार’, मध्य प्रदेश लेखक संघ का ‘अक्षर आदित्य सम्मान’, आर्यभाषा संस्थान, वाराण्सीाक ‘आर्यकल्प पुरस्कार’, कविता पर ‘दिव्य पुरस्कार’, आलोचना पर ‘प्रमोद वर्मा पुरस्कार’ एवं दुष्यंत संग्रहालय, भोपाल का ‘सुदीर्घ साधना’
प्रकाशित कृतियां –
कविता संग्रह : आकार लेती यात्राऍ, पहाड़ो के बीच, देखो सॉप : तक्षक नाग, तुम पूरी पृथ्वी हो कविता, पकी फसल के बीच, नर्मदा की लहरों से, देखा बिना नाम के तुम्हें, प्रणय का अनहद। गीत-नवगीत संग्रह : अंजुरी भर घाम, मुक्ति के शंख, सतपुड़ा के शिखरों से । कथा संग्रह : वह गंध, प्रश्न। संपादित ग्रंथ : भवानी भाई, विजेन्द्र का लेखन सूत्र।
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पुरुस्कृत कृतियाँ
प्रणय का अनहद
मँँजती धुलती पतीली
आँगन बुहारते वक़्त
जिस बरगद की छांव तले रहता था मेरा गाँव!
वह बरगद खुद घूम रहा अब नंगे नंगे पांव !!
प्रेमशंकर रघुवंशी
सिलसिले चिट्ठी के
एक बड़ा अन्तराल पाटने
चिट्ठी के सिलसिले चले
कब तक हम खबरों की पर्त पर्त खोंलें
इससे तो मौन ही भले