पानी में

पानी में
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शीतलता है ज्वाला भी है पानी में
संजीवनी है हलाहल भी पानी में
गंगा रेवा सागर की भी संस्कृतियाँ है पानी में
कमला भी है रंभा भी है पानी में
वीणा ध्वनि अनुगूँज शंख की पानी में
धन्वंतरि की औषधसिध्दि पानी में
दूध सरीखी फेन उठाती कामधेनु हैं पानी में
ज्वार और भाटों से सज्जित कल्पवृक्ष हैं पानी में
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह ” नर्मदा की लहरों से ” उद्धृत )