खरा होने के वास्ते – “मँजती धुलती पतीली”

खरा होने के वास्ते (मँजती धुलती पतीली“)

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जब आपसी संवाद से ज्यादा
गप्पों में कटने लगे दिन
तो समझ लो —
ठहराव का एक पहाड़
खड़ा होने लगा है
अकर्मण्यता की पन्नियाँ
और यह भी स्वीकार लो कि —
किसी भी क्षण से
लाश की तरह
निष्प्राण हो सकती है जिन्दगी
संवाद और गप्प में
फर्क न कर पाने की दशा में
घायल होते आपसी संवाद
और प्रेम तक को –
खरा होने के वास्ते देने पड़ते प्रमाण।
(श्री प्रेमशंकर रघुवंशी जी के कविता संग्रह “मँजती धुलती पतीली” से उद्धृत)

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